दर्द-ए-दिल को जो मैं इस दिल का ही हिस्सा कर लूँ दर्द का दर्द मिटे दिल को भी अच्छा कर लूँ जब कि ख़ुद ही में मुझे उस की झलक मिलती है हिज्र में सुब्ह तलक ख़ुद को ही सज्दा कर लूँ तेरी दुनिया में बहुत काम हैं होने या-रब मैं अकेला हूँ अकेला ही मैं क्या क्या कर लूँ जूझ सकता हूँ ज़माने की किसी मुश्किल से शक्तियाँ अपनी बढ़ा कर जो मैं इक-जा कर लूँ अपनी ग़ज़लों को नया रंग दिया है मैं ने हिज्र में उस के मैं इस रंग को चोखा कर लूँ पाठ उल्फ़त का पढ़ाना है मुझे दुनिया को तू जो दे साथ तो मैं काम ये पूरा कर लूँ ग़म-ए-जानाँ भी मिरा और ग़म-ए-दौराँ भी मिरा फिर भला क्यों मैं किसी ग़म का मुदावा कर लूँ कौन देता है यहाँ साथ किसी का 'आलम' किस को हमराज़ बना लूँ किसे अपना कर लूँ