दर्द-ए-उल्फ़त के बयाँ की न ज़रूरत होगी मेरे चेहरे से अयाँ दिल की हक़ीक़त होगी कौन फ़रियाद करेगा किसे जुरअत होगी हश्र में पेश-ए-नज़र जब तिरी सूरत होगी दास्तान-ए-शब-ए-हिज्राँ की करूँ क्या तशरीह मुख़्तसर भी जो कहूँगा तो तवालत होगी पेश-ए-दावर तो करूँ ख़ून का दा'वा लेकिन मेरे क़ातिल को सर-ए-हश्र नदामत होगी दर्द-ए-हिज्राँ के बयाँ की नहीं मुझ को हाजत उन पे ज़ाहिर दिल-ए-बेताब की हालत होगी इस लिए उन के क़दम बढ़ नहीं सकते आगे रहगुज़र में किसी नाशाद की तुर्बत होगी दाग़-ए-उल्फ़त हैं वही फूल कि रफ़्ता रफ़्ता जिन से काशाना-ए-दिल की मिरे ज़ीनत होगी ज़िंदगी क़ल्ब की हरकत ही से वाबस्ता है दिल जो ठहरेगा तो इक और क़यामत होगी