राज़-ए-फ़ितरत निहाँ था निहाँ है अभी आसमाँ से परे आसमाँ है अभी मैं अज़ल से सुनाता रहा हूँ मगर ना-मुकम्मल मिरी दास्ताँ है अभी हम-सफ़र छोड़ कर चल दिए हैं तो क्या साथ मेरे ये उम्र-ए-रवाँ है अभी उम्र-भर सू-ए-मंज़िल चला हूँ मगर फ़ासला जूँ का तूँ दरमियाँ है अभी राहतों के वो दिन जाने कब आएँगे ज़िंदगी दर्द की तर्जुमाँ है अभी मंज़िल-ए-आशिक़ी हम कहाँ पाएँगे दिल में एहसास-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ है अभी