दर-ए-मय-ख़ाना से दीवार-ए-चमन तक पहुँचे हम ग़ज़ालों के तआ'क़ुब में ख़ुतन तक पहुँचे हाथ मय-ख़्वारों के बे-क़स्द उठे थे लेकिन इत्तिफ़ाक़न तिरे गेसू की शिकन तक पहुँचे मदरसे में कहाँ उस ज़ुल्फ़ का मौज़ू-ए-जदीद लोग पहुँचे तो रिवायात-ए-कुहन तक पहुँचे रास्ता एक था हम इश्क़ के दीवानों का क़द-ओ-गेसू से चले दार-ओ-रसन तक पहुँचे आएँ हम दस्त-दराज़ी पे तो मयख़ाने से सिलसिला अंजुमन-ए-सर्व-ओ-समन तक पहुँचे इक क़बा-ए-सुबुक-ओ-तंग में सौ सौ हैं तिलिस्म क्या कोई हुस्न के असरार-ए-कुहन तक पहुँचे आप ही आप जो खुल जाए तिरी ज़ुल्फ़-ए-दराज़ ना-गहाँ बे-हुनरी नुक़्ता-ए-फ़न तक पहुँचे ऐ सुख़न-फ़हम हम उस बज़्म से आए हैं जहाँ हैरत आईना-ए-उस्लूब-ए-सुख़न तक पहुँचे इस तरह शौक़-ए-ग़ज़ालाँ में ग़ज़ल-ख़्वाँ हो ज़फ़र शोहरत-ए-मुश्क-ए-ग़ज़ल शहर-ए-ख़ुतन तक पहुँचे