किसी के लब पे भोले-पन से मेरा नाम है शायद मिरी बेचारगी से फिर किसी को काम है शायद ये हलचल सी मची है आज जो सारे ज़माने में सुना है कुछ हमारे वास्ते पैग़ाम है शायद तुम्हें भी रास आए या न आए आज का आलम तुम्हारा भी हमारी ही तरह अंजाम है शायद ज़माने को नहीं भाया मिरा ख़ामोश सा रहना ख़मोशी भी मिरी अब मोरिद-ए-इल्ज़ाम है शायद न काली रात कटती है न रौशन दिन गुज़रता है किसी से दिल लगाने का यही अंजाम है शायद असर करता अगर नाला तो पत्थर मोम हो जाता अभी जज़्ब-ए-मोहब्बत ही हमारा ख़ाम है शायद फ़क़त रुस्वाइयाँ लिक्खी हैं 'शादाँ' के मुक़द्दर में रह-ए-उल्फ़त में चलने का यही इनआ'म है शायद