दरीचे सो गए शब जागती है मेरे कमरे में कैसी ख़ामुशी है जिधर देखो फ़सुर्दा ज़िंदगी है मुझे लगता है ये ग़म की सदी है जो रस्तों में भटकती फिर रही है इसे पहचान फ़िक्र-ए-ज़िंदगी है समुंदर का तमव्वुज अब्र-ओ-बाराँ ज़मीं के दिल में फिर भी तिश्नगी है हर इक लम्हा हमारा ख़ून-ए-ताज़ा मोहब्बत जोंक बन कर चूसती है ये सन्नाटा ये तन्हाई ये कमरा ख़यालों में चुड़ैल अब नाचती है मैं 'नय्यर' क्या दिखाऊँ ज़ख़्म दिल का किसी की आँख ख़ुद नम हो गई है