दरिया में डूब जावे कि या चाह में पड़े ऐ इश्क़ पर न कोई तिरी राह में पड़े मत पूछ जौर-ए-ग़म से दिल-ए-ना-तवाँ का हाल बिजली तो देखी होगी कभी काह में पड़े इक दम भी देख सकता नहीं हम को उस के पास ख़ाक उस फ़लक के दीदा-ए-बद-ख़्वाह में पड़े जो दोस्ती के नाम से रखता हो दुश्मनी दीवाना हो जो उस की कोई चाह में पड़े आ जा कहीं शिताब कि मानिंद-ए-नक़्श-ए-पा तकते हैं राह तेरी सर-ए-राह में पड़े जल्वे दो-चंद होवें शब-ए-माह के अभी उस माह-रू का अक्स अगर माह में पड़े सुलगे है नीम-सोख़्ता जैसे धुएँ के साथ जलते हैं यूँ हम अपनी 'हसन' आह में पड़े