दरिया-ए-आफ़्ताब की तुग़्यानियत न देख अपना वजूद आप पस-ए-आफ़ियत न देख आँखें सियाह नुक़्तों से आगे न बढ़ सकीं आईना-ए-ख़याल की मसरूफ़ियत न देख ये देख अब सवाल-ए-बक़ा-ए-यक़ीन है टूटे हुए गुमान की मासूमियत न देख आदाब-ए-हर-शिकस्ता-लबी का लिहाज़ रख हर बात में नज़ाकत-ए-गुफ़्तारियत न देख जमते हुए ग़ुबार का साया न सर पे रख ऐ 'क़ौस' उड़ती गर्द की दीवारियत न देख