दरख़्त कैसे बढ़ेगा अगर न पानी दे किसी को पढ़ जो तिरे शे'र को रवानी दे अगरचे मैं ने तो आब-ए-हयात माँगा है जो मय ही देनी है तू ने बहुत पुरानी है ब-सद ख़ुलूस मुझे ज़हर दे गया है वो कि जिस से मैं ने कहा ज़िंदगी सुहानी दे जो एक बार अनल-हक़ की नज़्र कर दे तो हज़ार बार ख़ुदा तुझ को फिर जवानी दे निगह उदास है दे इस को कोई नज़्ज़ारा ज़बाँ जो गुंग है यारब उसे कहानी दे ज़मीं जो बाँझ है अब उस की गोद भी भर दे जो होंट सूख रहे हैं उन्हें भी पानी दे