दरमियाँ फ़ासला नहीं होता तू अगर बेवफ़ा नहीं होता इश्क़ की डोर ही कुछ ऐसी है जिस का कोई सिरा नहीं होता आश्ना हम वफ़ा से हो पाते वो अगर बेवफ़ा नहीं होता सच तो ये है कभी बुराई से आदमी का भला नहीं होता वो न आते अगर गुलिस्ताँ में कोई भी गुल खिला नहीं होता उन किताबों को हम नहीं पढ़ते जिन में ज़िक्र आप का नहीं होता चारागर सर पकड़ के बैठ गए दर्द दिल से जुदा नहीं होता तेरे कूचे से जब गुज़रता हूँ मुझ को अपना पता नहीं होता