कहने को तो है क्या नहीं क्यूँ है ख़लिश पता नहीं मुझ से हुए वो क्यूँ ख़फ़ा उन से मुझे गिला नहीं जिस की थी हम को जुस्तुजू क्यूँ वो हमें मिला नहीं फिर भी सज़ा मुझे मिली जब कि मेरी ख़ता नहीं उलझा हूँ इतना इश्क़ में मुझ को मिरा पता नहीं यूँ तो बहुत हैं राहतें ग़म की मिरे दवा नहीं कहने को तो हैं दूर वो दिल से मगर जुदा नहीं गर्दिश में हूँ घिरा हुआ आदमी मैं बुरा नहीं