डरो न तुम कि न सुन ले कहीं ख़ुदा मेरी कि रू-शनास-ए-इजाबत नहीं दुआ मेरी वो तुम कि तुम ने जफ़ा की तो कुछ बुरा न किया वो मैं कि ज़िक्र के क़ाबिल नहीं वफ़ा मेरी चले भी आओ कि दुनिया से जा रहा है कोई सुनो कि फिर न सुनोगे तुम इल्तिजा मेरी कुछ ऐसी यास से हसरत से मैं ने दम तोड़ा जिगर को थाम के रह रह गई क़ज़ा मेरी ख़ुदा ने ज़हर की तासीर बख़्श दी 'फ़ानी' तरस गई थी असर को बहुत दुआ मेरी