वो घर तिनकों से बनवाया गया है वहाँ हर ख़्वाब दफ़नाया गया है मिरी उल्फ़त को क्या समझेगा कोई सबक़ नफ़रत का दोहराया गया है मिरे अंदर का चेहरा मुख़्तलिफ़ है बदन पे और कुछ पाया गया है हुई है ज़िंदगी उफ़्ताद ऐसे हवस में हर मज़ा पाया गया है कही ऐसी है 'अम्बर' उस की हर बात शिकस्ता-दिल को तड़पाया गया है