दर-ओ-दीवार से जारी लहू है तिरी तस्वीर का दुख सुरख़-रू है बिछे हैं दूर तक पत्ते ज़मीं पर ये ख़ामोशी नहीं है हाओ हू है ख़ुशा आँखों में जंगल हैं तुम्हारी भटकने की मुझे भी आरज़ू है जिसे चुटकी बजाना कह रहे हो हमारी उँगलियों की गुफ़्तुगू है कोई तो आए छेड़े ज़िक्र तेरा समाअ'त कब से मेरी बा-वज़ू है