दर-ओ-दीवार पे शक्लें सी बनाने आई फिर ये बारिश मेरी तन्हाई चुराने आई ज़िंदगी बाप की मानिंद सज़ा देती है रहम-दिल माँ की तरह मौत बचाने आई आज कल फिर दिल-ए-बर्बाद की बातें हैं वही हम तो समझे थे कि कुछ अक़्ल ठिकाने आई दिल में आहट सी हुई रूह में दस्तक गूँजी किस की ख़ुश-बू ये मुझे मेरे सिरहाने आई मैं ने जब पहले-पहल अपना वतन छोड़ा था दूर तक मुझ को इक आवाज़ बुलाने आई तेरी मानिंद तिरी याद भी ज़ालिम निकली जब भी आई है मिरा दिल ही दुखाने आई