ख़ुद अपने अक्स को अपनी नज़र में क्या रखना कि हम ने छोड़ दिया घर में आइना रखना किसी के पेड़ का साया न आ सके घर में घरों के बीच में इतना तो फ़ासला रखना तमाम उम्र ही चाहे उड़ान में गुज़रे पराई शाख़ पे हरगिज़ न घोंसला रखना मिरी नज़र भी अंधेरों से ऊब सकती है कोई चराग़ तो यारो जला हुआ रखना लो तुम भी शौक़ से 'असलम' से एहतियात रखो हमें भी आ गया अपनों से फ़ासला रखना