दर-ओ-दीवार का बदला हुआ हुलिया लिखें इस हवेली का कोई दूसरा नक़्शा लिखें न कनीज़ों का वो झुरमुट न बही-ख़्वाहों का दिल की मानिंद महल को भी अकेला लिक्खें पार जो हम ने किया आग का दरिया वो था ज़िंदगी अब तुझे बीता हुआ लम्हा लिक्खें तिश्नगी तिश्ना-लबी अपना मुक़द्दर है तो अब समुंदर जो लिखा जाए तो प्यासा लिक्खें कितने हिस्सों में हमें बाँट रही है दुनिया और तक़ाज़ा है हमीं से उसे अच्छा लिक्खें हम ने जब देखा तो तस्वीर का हर रुख़ देखा आइना बन के लिखें अब जो सरापा लिक्खें बोल अनमोल हैं ये बात सदा याद रहे आप जो 'सीमा' लिखें अब वो निराला लिक्खें