दश्त में फ़िक्र-ए-ना-रसाई क्या हिज्र क्या हिज्र की कमाई क्या जो कभी थी सवार साँसों पर वो घड़ी फिर से लौट आई क्या हम जवानी तो अपनी हार चुके पाएँ अब क़ैद से रिहाई क्या रोते रोते निढाल हो गए हो बेटी होती नहीं पराई क्या दुख के लम्हों में इस क़दर तन्हा तेरा कोई नहीं है भाई क्या तेरी बस्ती के भोले-भाले लोग माँ को कहते हैं अब भी माई क्या कोई आवाज़ दे रहा है 'अमीन' तुझ को देता नहीं सुनाई क्या