फ़सल-ए-ग़म-ए-बहार का सौदा नहीं किया इस चश्म-ए-अश्क-बार का सौदा नहीं किया मजनूँ बने तो चाक-ए-गरेबाँ किया क़ुबूल दामान-ए-तार-तार का सौदा नहीं किया रंगीनियों के शहर में आ कर भी दोस्तो ख़्वाबों के रेगज़ार का सौदा नहीं किया क़दमों में क्या से क्या नहीं रक्खा गया मगर हम ने तुम्हारे प्यार का सौदा नहीं किया आँखों में काट ली है शब-ए-ज़ीस्त आख़िरश इक पल के इंतिज़ार का सौदा नहीं किया दुश्मन बना लिया है जहाँ को मगर 'अमीन' यारों के ए'तिबार का सौदा नहीं किया