दश्त में ख़ाक उड़ाने का इरादा नहीं है दिल ये सादा है मगर ऐसा भी सादा नहीं है रह-नवर्दी का यहाँ शौक़ ही बे-मा'नी है क्यूँ-कि ता-हद्द-ए-नज़र कोई भी जादा नहीं है उस की तहरीर का तक़रीर का मैं क़ाइल हूँ कोई तकरार नहीं कोई इआदा नहीं है शाहज़ादा भी भला आगे बढ़े तो क्यूँकर उस के हमराह कहीं कोई पियादा नहीं है घर कुशादा तो बनाए हैं यहाँ लोगों ने दिल किसी का भी मगर इतना कुशादा नहीं है