गुमान रहता है दिल में यक़ीं के होते हुए नहीं मकान पे रौनक़ मकीं के होते हुए कुछ आसमाँ की तरफ़ देखना भी लाज़िम था ज़मीं पे रहते हुए और ज़मीं के होते हुए मुनाफ़िक़त से हमें भी शदीद नफ़रत थी बुतों को रखा नहीं आस्तीं के होते हुए कोई जुनून तो सर में न था मगर हम भी लहूलुहान रहे इस जबीं के होते हुए किसी भी हाल में टूटे न रब्त दुनिया से यक़ीं के होते हुए और दीं के होते हुए