दश्त में छाँव कोई ढूँड निकाली जाए अपनी ही ज़ात की दीवार बना ली जाए ये तो मुमकिन है कि दीवार गिरा दें लेकिन कैसे गिरती हुई दीवार सँभाली जाए ढूँढना होगा ख़द-ओ-ख़ाल की दुनिया में जिसे पहले उस शख़्स की तस्वीर बना ली जाए दिल हो फ़य्याज़ तो बस एक ही दर काफ़ी है क्या ज़रूरी है कि हर दर पे सवाली जाए तुम जो बोले तो मिली ज़ौक़-ए-अना को तस्कीन मुझ को डर था मिरी आवाज़ न ख़ाली जाए लिख तो दें हर दर-ओ-दीवार पे 'आबिद' लेकिन बात ऐसी है कि सीने में छुपा ली जाए