दश्त में फूल खिला रक्खा है हम ने दिल दिल से मिला रक्खा है तेरी ख़ातिर तुझे मालूम कहाँ हम ने किस किस को भुला रक्खा है बस तिरा ज़िक्र नई फ़िक्र के साथ हिज्र में और तो क्या रक्खा है क्या ख़बर आज ही कर डालें हम काम जो कल पे उठा रक्खा है इस ने रक्खा है सुकूँ नेकी में और गुनाहों में मज़ा रक्खा है आईना देख रहे हो या फिर ख़ुद को तस्वीर बना रक्खा है बैर उस को ही चराग़ों से हुआ नाम जिस ने भी हवा रक्खा है फ़क़त अपनी न रही फ़िक्र 'जमील' हम ने तेरा भी पता रक्खा है