दश्त में मिस्ल सदा के थे By Ghazal << ख़ामुशी से सवाल मेरा था ये क्या ख़बर थी कि जब तुम... >> दश्त में मिस्ल सदा के थे क्या क्या नक़्श वफ़ा के थे तोड़ गए जो का'बा-ए-दिल बंदे ख़ास ख़ुदा के थे साल महीने दिन और रात झोंके चार हवा के थे मुझ बे-घर के पास रहे जितने सैल बला के थे मैं भी 'तसव्वुर' उन में था जिन के तीर ख़ता के थे Share on: