दश्त से मैं जो अपने घर आया मेरे दिल में ख़ुदा उतर आया जिस की क़ीमत न दे सका कोई मेरे हिस्से में वो गुहर आया सारी दुनिया है राह पर मेरी जब से मैं तेरी राह पर आया कितने पत्थर हैं सामने लेकिन बुत-गरी का किसे हुनर आया किस ने दुनिया को ज़िंदगी दे दी मौत का दिल भी आज भर आया फिर दर-ओ-बाम हो गए रंगीं फिर लहू मेरा मौज पर आया