खो जाऊँ मुश्त-ए-ख़ाक में ऐसा नहीं हूँ मैं दरिया हूँ अपनी ज़ात में क़तरा नहीं हूँ मैं गुज़रूँगा जिस जगह से निशाँ छोड़ जाऊँगा आँधी हूँ अपने वक़्त की झोंका नहीं हूँ मैं मंज़िल से ये कहो कि करे मेरा इंतिज़ार ठहरा हुआ ज़रूर हूँ भटका नहीं हूँ मैं पूछी है ख़त में आप ने जो ख़ैरियत मिरी कैसे लिखूँ जनाब कि अच्छा नहीं हूँ मैं ख़ुशबू तिरे बदन की मिरे साथ साथ है कह दे कोई हवाओं से तन्हा नहीं हूँ मैं हुस्न-ओ-शबाब साग़र-ओ-मीना थे सामने लेकिन किसी भी शब कहीं ठहरा नहीं हूँ मैं दे कर खिलौने मुझ को जो बहला रहे हैं लोग 'एजाज़' उन से कह दो कि बच्चा नहीं हूँ मैं