दश्त-ए-तलब में कब से अकेला खड़ा हूँ मैं जिस का नहीं जवाब कोई वो सदा हूँ मैं किस की तलाश है मुझे अपने वजूद में वो कौन खो गया है जिसे ढूँढता हूँ मैं ये मैं ने कब कहा था कि ठहरो मिरे लिए देखा तो होता मुड़ के कहाँ रह गया हूँ मैं है किस का इंतिज़ार तुझे राह-ए-रफ़्तगाँ तेरी हदों से दूर बहुत जा चुका हूँ मैं मुद्दत के बाद लौट के घर आ गया तो हूँ अब सोचने लगा हूँ कोई दूसरा हूँ मैं