दश्त-ए-तन्हाई में जलने की सज़ा जाने है क्या है बरताव हवाओं का दिया जाने है मैं उसे दिल के धड़कने का सबब कहता हूँ और इक वो कि मुझे ख़ुद से जुदा जाने है बे-ज़मीरों का भी जीना कोई जीना है कि बस लज़्ज़त-ए-ज़ीस्त तो पाबंद-ए-अना जाने है मैं इक आसूदा-ए-ग़म हूँ सर-ए-राह-ए-हस्ती जुज़ मिरे कैफ़-ए-अलम कौन भला जाने है तुम जो इस राह से गुज़रोगे तो मिल जाऊँगा मेरी मंज़िल मिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा जाने है अहल-ए-दानिश को कहाँ ख़ंदा-लबी की मोहलत सिर्फ़ दीवाना ही ये तर्ज़-ओ-अदा जाने है मुझ पे क्या गुज़री है आख़िर शब-ए-हिज्राँ में 'ख़तीब' मेरा दिल जाने है या मेरा ख़ुदा जाने है