ख़राशें और शिकन-आलूद चेहरा बोल सकता है समझने वाला कोई हो तो गूँगा बोल सकता है हम अपने से बहुत छोटे को भी छोटा नहीं कहते ज़बाँ उस की है वो दरिया को क़तरा बोल सकता है अता-ए-रब अलग शय है ये बंदों का दिया है क्या सिखाओ जितना तोते को बस उतना बोल सकता है शराफ़त ख़ून में होती है लहजे में नहीं होती बुरा इंसाँ किसी को कैसे अच्छा बोल सकता है यहाँ चलते हैं सारे काम नज़रों के इशारे पर ये बज़्म-ए-नाज़ है इस में कोई क्या बोल सकता है 'रज़ा' जिस को अभी रखते हो तुम जाँ से अज़ीज़ अपना अदावत में ज़रा देखो वो क्या क्या बोल सकता है