दस्त-ए-गुल याद नहीं मौज-ए-सबा याद नहीं अब मुझे कुछ रुख़-ए-जानाँ के सिवा याद नहीं कौन सी राहगुज़र और कहाँ की मंज़िल दिल को टुक वुसअ'त-ए-सहरा के सिवा याद नहीं वादा-ए-वस्ल उन्हें याद दिलाया तो कहा कौन कहता है कि पैमान-ए-वफ़ा याद नहीं मय-गुसारों पे वो उफ़्ताद पड़ी है अब के पी के महफ़िल में बहकने की अदा याद नहीं याद-ए-महबूब को सीने में बसाया जब से ग़ैर तो ग़ैर ख़ुद अपना भी पता याद नहीं