दिल में सोज़िश से धुआँ हो तो ग़ज़ल होती है ख़ून आँखों से रवाँ हो तो ग़ज़ल होती है ख़ुश्क आँखें हों सिले होंट हों चेहरा ख़ंदाँ और दिल नाला-कुनाँ हो तो ग़ज़ल होती है लुत्फ़ तो जब है कि इस लब के सिवा आँखों में क़िस्सा-ए-दर्द बयाँ हो तो ग़ज़ल होती है ज़ब्त-ओ-हिरमान-ओ-अलम से नहीं होती है ग़ज़ल औज पर अज़्म-ए-जवाँ हो तो ग़ज़ल होती है उन से मिलने की तमन्ना है 'समीअ'' मुद्दत से राज़ ये उन पे अयाँ हो तो ग़ज़ल होती है