दास्ताँ वस्ल की इक बात से आगे न बढ़ी आप की शिकवा-शिकायत से आगे न बढ़ी लाख रोती रही जलती रही अफ़्सोस मगर ज़िंदगी शम्अ' की इक रात से आगे न बढ़ी तू जफ़ा-केश रहा और में वफ़ा-कोश रहा बात तेरी भी मिरी बात से आगे न बढ़ी यूँ तो आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बड़े दा'वे थे दोस्ती पहली मुलाक़ात से आगे न बढ़ी मिल गए जब वही शिकवे वही क़िस्से 'असअद' ये ख़ुराफ़ात ख़ुराफ़ात से आगे न बढ़ी