दास्ताँ यूँ बदल गई होगी मौज साहिल निगल गई होगी तुम को शायद यक़ीं न आए पर आग पानी से जल गई होगी चंद पल रहती है अना उस की बर्फ़ बन कर पिघल गई होगी हाए अंजाम किस गुमाँ का है ये शाख़ कुछ फूल फल गई होगी रात भर आसमान रोया था सुब्ह सीलन से गल गई होगी देख हालत मिरी जबीनें कई गिरते गिरते सँभल गई होगी मोड़ से दूरी पर खड़ा हूँ मैं गाड़ी रस्ता बदल गई होगी घाव देती है अब वो मोम ज़बाँ ग़ैर साँचे में ढल गई होगी पहले जो था वही हूँ मैं अब भी फ़ितरत उस की बदल गई होगी