दस्तक न कोई दर पे न मेहमाँ की तवक़्क़ो अब छूट गई महफ़िल-ए-याराँ की तवक़्क़ो शाम आई कि फिर बुझने लगे चाँद सितारे फिर माँद हुई जश्न-ए-चराग़ाँ की तवक़्क़ो हर सम्त बस अब सूखे शजर हाँप रहे हैं ऐसे में करे कौन बहाराँ की तवक़्क़ो सीने में सजाए हैं तिरे ज़ख़्म के बूटे मरहम की तमन्ना है न दरमाँ की तवक़्क़ो है अब भी मुझे तेरे पलट आने की उम्मीद अब तक है मुझे वा'दा-ओ-पैमाँ की तवक़्क़ो बस आख़िरी उम्मीद की मानिंद बची है दिल के किसी कोने में तिरी हाँ की तवक़्क़ो