दस्तक पे कोई भी न मुझे आन कर मिला बरसों के बा'द भी वो मुझे बंद दर मिला क़िस्मत में हादसात की लिक्खी हुई थी धूप रस्ते में साया-दार न कोई शजर मिला बच्चों से छिन गया मैं तलाश-ए-मआश में छुट्टी के बावजूद मैं उन को न घर मिला बीवी से रोज़ रोज़ के झगड़ों से आख़िरश लोगों को उस का रेल की पटरी पे सर मिला हाथों में ख़्वाहिशात के कासे लिए हुए मुझ को सुकून-ए-दिल से तही हर बशर मिला ख़दशात भी न सच से मुझे बाज़ रख सके झूटी गवाहियों का न मुझ को हुनर मिला उस की इनायतों से झुकी शाख़ शाख़ को 'मेहदी' तवक़्क़ुआ'त से बढ़ कर समर मिला