अजीब बात है दिन भर के एहतिमाम के बा'द चराग़ एक भी रौशन हुआ न शाम के बा'द सुनाऊँ मैं किसे रूदाद-ए-शहर-ए-ना-पुरसाँ कि अजनबी हूँ यहाँ मुद्दतों क़याम के बा'द ख़िरद अलील थी दौर-ए-शराब से पहले क़दम में आई थी लग़्ज़िश शिकस्त-ए-जाम के बा'द सितम-ज़रीफ़ी-ए-तारीख़ है कि मसनद-गीर सदा ख़वास हुए इंक़लाब-ए-आम के बा'द हबाब सोच के क्या हम-रिकाब-ए-मौज हुआ कि बैठ जाना था जब एक आध गाम के बा'द रहे चराग़ दरीचे में दर खुला रखना मुसाफ़िर आन निकलते हैं बाज़ शाम के बा'द कभी कभी तो हो 'शौकत' शदीद ये एहसास कि हम तुयूर क़फ़स में पड़े हैं दाम के बा'द