दास्तान-ए-ग़म हम ने कह भी दी तो क्या होगा और बढ़ गई दिल की बे-कली तो क्या होगा उम्र-ए-रफ़्ता के क़िस्से दोस्तो न दोहराओ कोई याद-ए-ख़्वाबीदा जाग उठी तो क्या होगा ज़िंदगी तो अपनी है लुट गई तो फिर क्या ग़म ग़म तिरी अमानत है छिन गई तो क्या होगा दर्द से सँवारी है रूह-ए-ज़िंदगी हम ने दर्द को न रास आई ज़िंदगी तो क्या होगा