दास्तानों में वो जादू है न तफ़सीरों में है जो तिरी आँखों की बे-आवाज़ तक़रीरों में है राएगाँ हैं कल की ख़ुशियाँ कल के ग़म भी बे-असर अब भला रक्खा ही क्या माज़ी की तस्वीरों में है तेरी आँखों में अगर पढ़ने की हिम्मत है तो पढ़ कर्ब का मज़मूँ मिरे माथे की तहरीरों में है उस के इक इक अंग में वो बारहा पाई गई जो तनासुब की कशिश तर्शे हुए हीरों में है वो चुभन शे'रों में ढल जाए तो महशर हो बपा जो अभी उस शख़्स की गुफ़्तार के तीरों में है हर-क़दम पर चीख़ उठती है हज़ारों घंटियाँ नग़्मगी कैसी मिरे पाँव की ज़ंजीरों में है आँख खुलते ही अजब धड़का सा दिल को लग गया वो कहाँ सपनों में था जो उन की ताबीरों में है मुतमइन हैं हम किसी सूरत न मंज़र से हैं ख़ुश ना-शकेबाई का नश्तर अपनी तक़दीरों में है धूप की शिद्दत ने उन को कर दिया गरचे निढाल फिर भी चलने की लगन 'बेताब' रहगीरों में है