दस्त-ए-नासेह जो मिरे जेब को इस बार लगा फाड़ूँ ऐसा कि फिर इस में न रहे तार लगा पहुँची उस बुत को ख़बर नाला-ए-तन्हाई की मुद्दई कौन खड़ा था सर-ए-दीवार लगा मरज़-ए-इश्क़ तुम्हारा तो ये तूफ़ाँ है कि मैं जिस से मज़कूर किया उस को ये आज़ार लगा जिस का मल्लाह बना इश्क़ वो कश्ती डूबी उस के खेवे से तो बेड़ा न कोई पार लगा मुर्ग़-ए-ज़ीरक थे तह-ए-दाम न आए हरगिज़ उड़ गए हम सर-ए-सय्याद पे मिन्क़ार लगा दर्द ये दिल में उठा रात कि हो गर्म-ए-तपिश उड़ गया सूने फ़लक में पर-ए-अहरार लगा पर्दा-ए-ख़ाक से दी मुझ को किसी ने आवाज़ गोर हमवार थी सुनने जो मैं यकबार लगा फिर तो ग़फ़लत-ज़दा ता-ख़्वावाब-ए-अदम है याँ तू देख ले हम को न टुक दीदा-ए-बेदार लगा जब मैं देखूँ हूँ तो कसरत है ख़रीदारों की घर में उस ग़ैरत-ए-यूसुफ़ के है बाज़ार लगा खींच पीछे को क़दम आह मैं याँ तक रोया कि मिरे आगे 'बक़ा' दुर का इक अम्बार लगा