दस्त-ए-साक़ी शराब होता है रुख़-ए-जानाँ गुलाब होता है जैसे होता है एक कार-ए-गुनाह वैसे कार-ए-सवाब होता है जब वो देता है दोस्ती में फ़रेब दिल मिरा आब आब होता है किसी दरिया-ए-मौजज़न की तरह आँख में भी चनाब होता है कौन इस पर हज़ार जाँ से फ़िदा मैं ही मेरा जवाब होता है अक्स अंगड़ाई ले भी सकता है आइना महव-ए-ख़्वाब होता है चर्ख़-ए-रौशन के नूर से 'आदिल' बंद ज़ुल्मत का बाब होता है