ऐश-ए-रफ़्ता का यही है वो शबिस्ताँ ऐ दोस्त यहीं ख़्वाबीदा थी आराम-ए-दिल-ओ-जाँ ऐ दोस्त बे-ख़बर सोने में वो जिस्म खुला शानों तक जैसे जन्नत का न हो कोई निगहबाँ ऐ दोस्त साज़ हाथों में उठाया तिरी अंगड़ाई ने चूड़ियाँ पहलू बदलते ही ग़ज़ल-ख़्वाँ ऐ दोस्त पेश-ए-आईना मसहरी पे खुले गेसू-ए-नाज़ दूर बादल में कोई हूर-ए-परेशाँ ऐ दोस्त मुख़्तलिफ़ वज़्अ तिरे हुस्न को मल्बूस ने दी शौक़ के मैं ने तराशे कई उनवाँ ऐ दोस्त रोकना घर तुझे जाने से ब-ख़ौफ़-ए-हिज्राँ जागुज़ीँ दिल में तिरे याद अज़ीज़ाँ ऐ दोस्त जो उमंगों को उदासी के हवाले कर दे आह वो तुंद-मिज़ाजी-ए-बुज़ुर्गाँ ऐ दोस्त नक़्श है वक़्त की पेशानी पे अहद-ए-रंगीं हम से गो रुक न सकी उम्र-ए-गुरेज़ाँ ऐ दोस्त