दस्तियाब उस को हुआ जब से है गुल-दस्ता-ए-दाग़ बुलबुल-ए-दिल का नहीं मिलता है ज़िन्हार दिमाग़ हल्क़ा-ए-ज़ुल्फ़ से उस की जो अयाँ हैं आरिज़ शब-ए-तारीक में गोया कि फ़रोज़ाँ है चराग़ गर फ़रोग़-ए-रुख़-ए-जानाना मदद-फ़रमा हो ग़म-ए-कौनैन से हो जावे वहीं दिल को फ़राग़ फ़ज़्ल-ए-ईज़द से मुबारक रहे ऐ वाइज़-ए-शहर कूचा-ए-यार हमें और तुझे फ़िरदौस का बाग़ मस्त-ए-इश्क़-ए-शह-ए-ख़ादिम हूँ मैं 'आसिम' यकसर जिस ने बख़्शा है मुझे बादा-ए-इरफ़ाँ का अयाग़