दस्त-ओ-पा हैं सब के शल इक दस्त-ए-क़ातिल के सिवा रक़्स कोई भी न होगा रक़्स-ए-बिस्मिल के सिवा मुत्तफ़िक़ इस पर सभी हैं क्या ख़ुदा क्या नाख़ुदा ये सफ़ीना अब कहीं भी जाए साहिल के सिवा मैं जहाँ पर था वहाँ से लौटना मुमकिन न था और तुम भी आ गए थे पास कुछ दिल के सिवा ज़िंदगी के रंग सारे एक तेरे दम से थे तू नहीं तो ज़िंदगी क्या है मसाइल के सिवा उस की महफ़िल आईना-ख़ाना तो थी लेकिन 'सुरूर' सारे आईने सलामत थे मिरे दिल के सिवा