फ़स्ल-ए-गुल क्या कर गई आशुफ़्ता सामानों के साथ हाथ हैं उलझे हुए अब तक गरेबानों के साथ तेरे मय-ख़ानों की इक लग़्ज़िश का हासिल कुछ न पूछ ज़िंदगी है आज तक गर्दिश में पैमानों के साथ देखना है ता-ब-मंज़िल हम-सफ़र रहता है कौन यूँ तो आलम चल पड़ा है आज दीवानों के साथ उन हसीं आँखों से अब लिल्लाह आँसू पूछ लो तुम भी दीवाने हुए जाते हो दीवानों के साथ ज़िंदगी नज़्र-ए-हरम तो हो चुकी लेकिन 'सुरूर' हर अक़ीदत क़ाज़ा-ए-आलम सनम-ख़ाने के साथ