दौर-ए-जवानी कब ठहरा है आज नहीं तो कल जाएगा कब तक इस पर नाज़ करोगे चढ़ता सूरज ढल जाएगा सोज़िश-ए-ग़म से दिल पिघला है चिंगारी है हर हर क़तरा आप न पोछें मेरे आँसू आप का दामन जल जाएगा रौशन चेहरा छुप जाएगा आप सँवारें ज़ुल्फ़ें वर्ना दिन के उजाले खो जाएँगे रात का जादू चल जाएगा साग़र खनके मयख़ाने में रात ढली अब लुत्फ़ आया है ऐसे में ऐ साक़ी-ए-महफ़िल शैख़ का आना खुल जाएगा आज की बातें कल पे न छोड़ो 'सोज़' तुम्हें मालूम नहीं है हाथ ही मलते रह जाओगे चाल ज़माना चल जाएगा