जो चारागर बन के आ रहे हैं इलाज ग़म का वो क्या करेंगे हमीं ने ये रोग है ख़रीदा हमीं ख़ुद उस की दवा करेंगे सफ़ीना गिर्दाब में जो फँसता तो शिकवा क़िस्मत का था मुनासिब डुबो दे कश्ती को नाख़ुदा ही तो आप किस का गिला करेंगे क़फ़स में क्यों फूल रख रहे हो दिलाते हो याद भूली बातें जो ग़म से मानूस हो चुके हैं ख़ुशी को ले कर वो क्या करेंगे उमीद रहज़न से रहबरी की फ़रेब खाना है और क्या है जो ख़ुद हवस के बने हैं क़ैदी वो क्या किसी को रिहा करेंगे लिबास-ए-इंसानियत में ऐसे लुटेरे देखे हैं 'सोज़' हम ने जो ख़िज़्र के भेस में तो होंगे मगर हमेशा दग़ा करेंगे