दौर-ए-ख़िज़ाँ में जश्न-ए-बहाराँ दिखाई दे अब चाक चाक अपना गरेबाँ दिखाई दे कब तक रहेंगे साहिल-ओ-तूफ़ाँ के दरमियाँ कब तक ये ज़िंदगी हमें ज़िंदाँ दिखाई दे मेरे ख़ुदा सज़ा-ओ-जज़ा अब यहाँ भी हो ये सरज़मीं भी अद्ल का उनवाँ दिखाई दे इस दौर-ए-गुमरही की ज़रूरत है नूह की साहिल-ब-दस्त फिर वही तूफ़ाँ दिखाई दे 'मंज़र' मैं थक चुका हूँ यही ढूँडते हुए इस दौर-ए-ना-शनास में इंसाँ दिखाई दे