है तर्जुमान अलम और अदीब है सर्दी तभी तो नोक-ए-क़लम से क़रीब है सर्दी दिमाग़ अर्श पे है काँपता ज़मीन पे है ऐ बंदे दर्स ले उम्दा ख़तीब है सर्दी मैं शाल ओढ़ के जो बाम पर टहलती हूँ पयाम-ए-दोस्त की शायद नक़ीब है सर्दी लरज़ती काँपती मैं ख़ुद से कहती रहती हूँ मैं मिलने जाऊँ तो कैसे रक़ीब है सर्दी हवा भी सर्द है पतझड़ भी है दरख़्तों पर फ़िराक़-ओ-हिज्र में लिपटी अजीब है सर्दी बसी हुई है फ़ज़ा में वो फ़रहत-अंगेज़ी सुलगते ज़ख़्मों की बेहतर तबीब है सर्दी 'सबीला' मौसम-ए-सर्मा भी एक ने'मत है वो ख़ुश-नसीब हैं जिन को नसीब है सर्दी