दौर-ए-नौ का जो तक़ाज़ा है नज़र में रखना गर्दिश-ए-वक़्त को भी अपने असर में रखना जाने किस मोड़ पे हो जाएगी दुनिया दुश्मन हर क़दम सोच के तुम राह-ए-सफ़र में रखना ये जो अनमोल गुहर ज़ीस्त का सरमाया हैं अश्क आएँ तो इन्हें दीदा-ए-तर में रखना राह-ए-दुश्वार में काम आएगी बे-शक ये भी बाप और माँ की दुआ ज़ाद-ए-सफ़र में रखना मेरे लब पर कोई शिकवा तो नहीं है लेकिन ऐ ख़ुदा मुझ को दुआओं के असर में रखना दिन में तुम देख न पाओगे कहीं भी जुगनू रात का हुस्न सदा ज़ेहन-ओ-नज़र में रखना इम्तिहाँ-गाह ये दुनिया है कोई बात नहीं ज़िक्र-ए-मा'बूद को साँसों के सफ़र में रखना सब्र और ज़ब्त-ओ-तहम्मुल हैं बहुत क़ीमती शय इस का 'मक़्सूद' था दामान-ए-बशर में रखना