दावा-ए-दीद किया जब किसी शैदाई ने चार-सू आग छिड़क दी तिरी रा'नाई ने लाख धोके दिए रंगीनी-ओ-रानाई ने आँख उठा कर भी न देखा तिरे शैदाई ने उन मरीज़ान-ए-मोहब्बत की दवा है न दुआ कर दिया जिन पे करम तेरी मसीहाई ने डूब कर दिल ने किया ग़र्क़ सफ़ीना आख़िर बहर-ए-उल्फ़त में डुबोया नहीं गहराई ने नक़्श-ए-पा उन का मगर सर को मयस्सर न हुआ दर-ब-दर ख़्वार किया शौक़-ए-जबीं-साई ने संग हैं गुहर-ए-गुहर जिन की ज़िया बख़्शी से बज़्म-ए-हस्ती में कुछ ऐसे भी तो हैं आईने हम ने देखा तो ज़माने की नज़र उस पे उठी भर दिया रंग तमाशे में तमाशाई ने देखने ही न दिया उन को 'रिशी' महफ़िल में कुछ तहय्युर ने कुछ अंदेशा-ए-रुस्वाई ने